बुंदेलखंड
बुंदेलखंड के अंतर्गत मध्यप्रदेश एवं उत्तरप्रदेश के कुल १३ जिले (प्रस्तावित) आते है जिनको आप ऊपर के नक़्शे से समझ सकते है
ओरछा
दरअसल, यह मंदिर भगवान राम की मूर्ति के लिए बनवाया गया था, लेकिन मूर्ति स्थापना के वक्त यह अपने स्थान से हिली नहीं। इस मूर्ति को मधुकर शाह बुन्देला के राज्यकाल (1554-92) के दौरान उनकी रानी गनेश कुवर अयोध्या से लाई थीं। रानी गनेश कुंवर वर्तमान ग्वालियर जिले के करहिया गांव की परमार राजपूत थीं। चतुर्भुज मंदिर बनने से पहले रानी पुख्य नक्षत्र में अयोध्या से पैदल चल कर बाल स्वरूप भगवान राम(राम लला)को ओरछा लाईं परंतु रात्रि हो जाने के कारण भगवान राम को कुछ समय के लिए महल के भोजन कक्ष में स्थापित किया गया। लेकिन मंदिर बनने के बाद कोई भी मूर्ति को उसके स्थान से हिला नहीं पाया। इसे ईश्वर का चमत्कार मानते हुए महल को ही मंदिर का रूप दे दिया गया और इसका नाम रखा गया राम राजा मंदिर। भगवान राम को यहां भगवान मानने के साथ यहां का राजा भी माना जाता है
आल्हा और ऊदल
आल्हा और ऊदल दो भाई थे। ये बुन्देलखण्ड के महोबा के वीर योद्धा और परमार के सामंत थे। कालिंजर के राजा परमार के दरबार में जगनिक नाम के एक कवि ने आल्हा खण्ड नामक एक काव्य रचा था उसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है। इस ग्रंथ में दों वीरों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है। आखरी लड़ाई उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ लड़ी थी। मां शारदा माई के भक्त आल्हा आज भी करते हैं मां की पूजा और आरती। जो इस पर विश्वास नहीं करता वे अपनी आंखों से जाकर देख सकता है।
खजुराहो
यह बुंदेलखंड के छतरपुर जिले में स्थित है। यहां बहुत बड़ी संख्या में प्राचीन मंदिर हैं। मंदिरों का शहर खजुराहो पूरे विश्व में मुड़े हुए पत्थरों से निर्मित मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। खजुराहो को इसके अलंकृत मंदिरों की वजह से जाना जाता है जो कि देश के सर्वोत्कृष्ठ मध्यकालीन स्मारक हैं। भारत के अलावा दुनिया भर के आगन्तुक और पर्यटक प्रेम के इस अप्रतिम सौंदर्य के प्रतीक को देखने के लिए निरंतर आते रहते हैं।
महाराजा छत्रसाल
महाराजा छत्रसाल (4 मई 1649 – 20 दिसम्बर 1731) भारत के मध्ययुग के एक महान राजपूत (क्षत्रिय) प्रतापी योद्धा थे जिन्होने मुगल शासक औरंगज़ेब को युद्ध में पराजित करके बुन्देलखण्ड में अपना राज्य स्थापित किया और 'महाराजा' की पदवी प्राप्त की। मध्य प्रदेश का छतरपुर नगर तथा छतरपुर जिला महाराज छत्रसाल के नाम पर हैं। छतरपुर के बहुत से स्थानों के नाम उनके नाम पर र्खे गए हैं, जैसे महाराजा छत्रसाल संग्रहालय। दिल्ली का छत्रसाल स्टेडियम भी उनके नाम पर ही है।
चित्रकूट
भारतीय साहित्य और पवित्र ग्रन्थों में प्रख्यात, वनवास काल में साढ़े ग्यारह वर्षों तक भगवान राम, माता सीता तथा श्रीराम के अनुज लक्ष्मण की निवास स्थली रहा चित्रकूट, मानव हृदय को शुद्ध करने और प्रकृति के आकर्षण से पर्यटकों को आकर्षित करने में सक्षम है। चित्रकूट एक प्राकृतिक स्थान है जो प्राकृतिक दृश्यों के साथ साथ अपने आध्यात्मिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है।
झांसी की रानी
इनके बचपन का नाम मनु था। सन् 1842 में मनु का विवाह झांसी के मराठा शासक राजा गंगाधर राव निम्बालकर के साथ हुआ। इसके बाद वे झांसी की रानी कहलाने लगीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। 1857 की क्रांति में इन्होने तात्या टोपे के साथ मिलकर अंग्रेजो को धूल छठा दी और वीरगति को प्राप्त हुई। झाँसी का किला एक बहुत सुन्दर एवं ऐतिहासिक किला है जो की पर्यटकों से भरा रहता है
पन्ना
पन्ना में हीरे की बहुत सी खदाने है जिनसे हीरे निकलते है इसके अलावा पन्ना में पन्ना नेशनल पार्क है जो की पर्यटकों की पसंद है
भीमकुंड
बुंदेलखंड के छतरपुर जिले की बड़ा मलहरा तहसील से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है प्रसिद्ध तीर्थस्थल 'भीमकुंड'। मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में स्थित यह स्थान प्राचीनकाल से ही ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों एवं साधकों की स्थली रही है। वर्तमान समय में यह स्थान धार्मिक पर्यटन एवं वैज्ञानिक शोध का केंद्र भी बन हुआ है। यहां स्थित जल कुंड भू-वैज्ञानिकों के लिए भी कौतूहल का विषय है। दरअसल, यह कुंड अपने भीतर 'अतल' गहराइयों को समेटे हुए हैं । आश्चर्य की बात तो यह है कि वैज्ञानिक इस जल कुंड में कई बार गोताखोरी करवा चुके हैं, किंतु इस जल कुंड की थाह अभी तक कोई नहीं पा सका। भीम कुंड एक गुफा में स्थित है । इस कुंड में डूबने वाला व्यक्ति सदा के लिए अदृश्य हो जाता है। भीमकुंड से जुड़ी पौराणिक कथाएं भी हैं। ऐसी मान्यता है कि महाभारत के समय जब पांडवों को अज्ञातवास मिला था तब वे यहां के घने जंगलों से गुजर रहे थे। उसी समय द्रौपदी को प्यास लगी। लेकिन, यहां पानी का कोई स्रोत नहीं था। द्रौपदी व्याकुलता देख गदाधारी भीम ने क्रोध में आकर अपने गदा से पहाड़ पर प्रहार किया। इससे यहां एक पानी का कुंड निर्मित हो गया। कुंड के जल से पांडवों और द्रौपदी ने अपनी प्यास बुझाई और भीम के नाम पर ही इस का नाम भीम कुंड पड़ गया।
कुंडेश्वर
कुंडेश्वर, बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले का एक गाँव है। यह टीकमगढ़ से 5 किलोमीटर दक्षिण में है। यहाँ का प्राचीन 'कुण्डदेव महादेव' मन्दिर प्रसिद्ध है जो जमधर नदी के किनारे स्थित है। ऐसी मान्यता है कि यह शिवलिंग प्रति साल चावल नुमा आकर में बढ़ता है